Subramaniam Badrinath एक बेहतरीन खिलाड़ी का करियर कैसे सोची समझी साजिश का शिकार हुआ, टीम इंडिया का वह रन मशीन जिसका करियर द्रविड़, लक्ष्मण और सचिन के साए में दब कर रह गया|
वह खिलाड़ी जिसकी किस्मत बेंच पर बैठकर ही लिखी गई| भारत का वह नायाब बल्लेबाज जिसके खेल की दुनिया कायल थी| मैदान पर ऐसा फुर्तीला जैसे हवा से बातें करता हो, उसके साथ खेल के मैदान में ऐसा बर्ताव हुआ, जैसे सांप के पैर पड़ने वाला मामला हो गया हो|
बद्रीनाथ का करियर बेंच पर ही दम तोड़ दिया

भारत में क्रिकेट जैसे खेल की जो लोकप्रियता देखने को मिलती है| शायद ही किसी और मुल्क में ऐसे देखने को मिले क्योंकि इस खेल ने नाम शोहरत और पैसा सब कुछ दिया है|
यही वजह है कि 140 करोड़ की आबादी वाले इस भारत देश में हर एक युवा क्रिकेटर बनने का ख्वाब संजोता है| और उसे पूरा करने के लिए दिन रात एक भी करता है| लेकिन जब वह उसे मुकाम तक पहुंचता है, तो उसके टैलेंट को नजरअंदाज कर उसे सिर्फ बेंच पर बैठा दिया जाता है|
और इस तरह उसका करियर बेंच पर ही दम तोड़ देता है| इंडियन क्रिकेट के इतिहास में बहुत से ऐसे होनहार और काबिल खिलाड़ी हुए हैं| जिनका करियर सिर्फ एक मौके की तलाश में खत्म हो गया, ऐसे ही एक खिलाड़ी है, जिसमें टैलेंट तो अकूत था, लेकिन सिर्फ एक मौके की आस में उसकी आंखें पत्थरा गई|
और फिर थक हारकर क्रिकेट से दूर हो गया, हम बात कर रहे हैं, Subramaniam Badrinath की वह बद्रीनाथ जिसमें एक बड़े खिलाड़ी बनने के सभी गुण थे|
Subramaniam Badrinath का जन्म 30 अगस्त 1980 को तमिलनाडु में हुआ था| भारत के सभी बच्चों की तरह बद्रीनाथ को भी बचपन में क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था| बद्रीनाथ हमेशा ही अपना आदर्श सचिन तेंदुलकर को मानते थे|
बद्रीनाथ ने स्कूलिंग दिनों से ही बनाई अपनी पहचान

Subramaniam Badrinath के हुनर को सबसे पहले उनके पिता ने पहचाना था| एक दिन पास के ही एक मैदान पर 7 बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे| काफी शाम हो चुकी थी, बद्रीनाथ के पिता उन्हें लेने गए तो उन्होंने अपने बेटे का खेल देखा, इसके बाद वह काफी प्रभावित हुए|
Subramaniam Badrinath के पिता कुछ दिन तक बेटे के साथ ग्राउंड पर खेल देखने जाते थे| बद्रीनाथ ने अपनी शुरुआती शिक्षा तमिलनाडु के ही पद्मश्री सादरी से पूरी कि, यह वही फेमस स्कूल है, जहां से गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और भारतीय स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने भी अपनी शिक्षा पूरी की है|
Subramaniam Badrinath ने स्कूली दिनों से ही अपनी पहचान बनाई है| यही नहीं वह अपना करियर शुरू से ही सिर्फ क्रिकेट में ही बनना चाहते थे| उन्हें अन्य खेलों में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी| बद्रीनाथ को जो कोई भी खेलते हुए देखा था, सबकी जुबां पर एक ही नाम होता था, तुम एक दिन भारत के लिए जरूर खेलोगे|
स्कूल और क्लब क्रिकेट खेलने के बाद Subramaniam Badrinath को घरेलू क्रिकेट में बहुत जल्द मौका मिल गया,बद्रीनाथ ने अपना प्रथम श्रेणी क्रिकेट करियर की शुरुआत साल 2000 में तमिलनाडु से की थी|
बद्रीनाथ 2004 में 501 रन के साथ सुर्खियो में आए

Subramaniam Badrinath उन बल्लेबाजों में से एक थे, जो एक बार क्रीज पर टिकने के बाद जल्दी आउट नहीं होते थे|अंगद की तरह पांव जमा कर बल्लेबाजी करने वाले बद्रीनाथ गेंदबाजों का दम निकाल देते थे| उनकी बल्लेबाजी में वह अद्भुत कला थी जो बहुत कम खिलाड़ियों में नजर आती थी|
Subramaniam Badrinath अभी एक अनजान चेहरा थे, वह सुर्खियों में तब आए जब 2004 में दिलीप ट्रॉफी में दक्षिण जोन की तरफ से माइकल लंब, केबिन पीटरसन, मैट प्रायर, साइमन जोंस, जैसे दिग्गज से सजी टीम के आगे 501 रनों का पहाड़ जैसा स्कोर चेस किया था|
इस मैच में Subramaniam Badrinath ने शतक तो बनाया ही, साथ ही वेणुगोपाल के साथ मिलकर टीम को जिताया भी, अभी बद्री के लिए यह तो एक महज शुरुआत थी| इसके बाद बद्री का बल्ला आगे बहुत कुछ करिश्मे दिखाने वाला था|
साल 2005 में बद्रीनाथ ने रणजी के सीजन में सिर्फ पांच मैचो में 80 की शानदार औसत से 636 रन मार दिए थे| उनके इस शानदार प्रदर्शन को देखते हुए, बद्रीनाथ को तमिलनाडु टीम का कप्तान बना दिया गया, यह जाबाज खिलाड़ी की तकनीक से तो भर ही था| साथ ही उसके पास बहुत से ऐसे शोर्ट थे,जो बहुत कम बल्लेबाजों में देखने को मिलते हैं|
बद्रीनाथ अपनी टीम के सर्वश्रेष्ठ फील्डर भी थे

तमिलनाडु की टीम जब भी मुसीबत में आती बद्रीनाथ संकटमोचक बनकर आते, और टीम की नईया को पार लगा जाते बद्री एक बार क्रीज पर पांव जमा लेते, तो उसे उखाड़ने में विरोधी टीम केगेंदबाजों का दम निकल जाता था|
Subramaniam Badrinath का बल्ला शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा है, यही वजह थी कि 2006 और 2007 के रणजी सीजन में बद्रीनाथ ने लगभग 50 की औसत से 436 रन बना डाले| बद्रीनाथ को दरकार थी बस टीम इंडिया की नीली जर्सी की, इस खिलाड़ी का प्रदर्शन ऐसा था, कि बल्ले के अलावा फील्डिंग में भी जबरदस्त जौहर दिखाया|
छरहरा बदन दुबला पतला और फुर्तीला खिलाड़ी जब मैदान पर फील्डिंग करता, तो चीते के माफिक गेंद पर झपट्टा था, बद्रीनाथ अक्सर पॉइंट पर फील्डिंग करते थे, जहां अक्सर टीम के सर्वश्रेष्ठ फील्डर फील्डिंग करते हैं|
Subramaniam Badrinath के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें इंडिया ए टीम में जगह मिली जहां उन्होंने केनिया, दक्षिण अफ्रीका और जिंबॉब्वे के खिलाफ खूब रन बनाए, बद्रीनाथ के प्रदर्शन की गूंज नेशनल टीम के चयन करताओ तक पहुंच चुकी थी|
यही वजह थी कि उन्हें ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाले अंतिम वनडे मैच के लिए टीम में शामिल कर लिया गया लेकिन उन्हें खेलने का मौका नहीं मिला, बिना मैच खेले ही उन्हें पाकिस्तान दौरे से बाहर कर दिया गया|
चयनकर्ताओं ने बद्रीनाथ को किया नज़रअंदाज़

इसके बावजूद बद्रीनाथ ने हार नहीं मानी, और उन्होंने घरेलू क्रिकेट खेलना जारी रखा यहां उन्होंने तीन तीरेपन की औसत से 665 रन ठोककर एक बार फिर अपनी दावेदारी पेश कर दी| साल 2007 में होने वाले विश्व कप में बद्रीनाथ का नाम सुपर 30 स्क्वाड में तो था, लेकिन आगे उनका नाम नहीं आया, क्योंकि वीरेंद्र सहवाग, राहुल द्रविड़, वसीम जाफर, सौरव गांगुली, और सचिन तेंदुलकर जैसे बड़े दिग्गजों के आगे बद्रीनाथ का खेल बौना साबित हो रहा था|
लेकिन किस्मत का मारा यह खिलाड़ी टीम में आते-आते फिर रह गया, जहां 2008 में भारत को श्रीलंका दौरे पर जाना था इस दौरे पर वीरेंद्र सहवाग चोटिल हो गए थे, लेकिन बद्रीनाथ को नजरअंदाज करते हुए चयनकर्ताओं ने युवा खिलाड़ी विराट कोहली को टीम में जगह दे दी|
विराट टीम इंडिया को विजेता बनकर लौटे थे| इसीलिए चारो तरफ उनकी ही चर्चा हो रही थी| एक खिलाड़ी के लिए दुख का समय तब होता है, जब वह घरेलू क्रिकेट में रनों का पहाड़ खड़ा कर रहा हो और उसे देश के लिए खेलने का अवसर न मिले, मौका न मिलने से झल्लाए बद्रीनाथ ने एक बार एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यहां तक कह दिया था, कि कम से कम मुझे असफल होने का एक मौका तो दो|
अगर मैं इंटरनेशनल क्रिकेट पर रन नहीं बना सका तो दोबारा में मौका नहीं मांगूंगा, और खुद को दूर कर लूंगा, कुछ समय बाद जब इस दौरे पर सचिन तेंदुलकर को कोहनी में चोट लगी तो सिलेक्टरों ने न चाहते हुए बद्रीनाथ को मौका दिया|
ब्रिस्बेन में आयोजित एक इमर्जिंग टूर्नामेंट में भारत का नेतृत्व किया

और इस तरह साल 2008 में श्रीलंका के दांबुला में बद्रीनाथ ने पदार्पण किया, लेकिन उस मैच में उन्हें सात नंबर पर भेजा गया मुश्किल समय में 143 रनों का पीछा करते हुए भारत ने सिर्फ 75 रन पर पांच विकेट गंवा दिए थे|
तब क्रीज पर आए बद्रीनाथ ने बहुत ही सूझबूझ से खेल दिखाया और अपने खाते में 27 रन जोड़े इसके बाद भारत यह मुकाबला 27 रनों से जीत गया बद्रीनाथ के धैर्य और तकनीक से हर कोई प्रभावित हुआ इसके बाद बद्री को दो और मुकाबला खेलने को मिले, लेकिन फिर उन्हें बिना किसी वजह से टीम से बाहर कर दिया गया|
इसी साल 2008 में आईपीएल की शुरुआत हुई जहां बद्रीनाथ को चेन्नई सुपर किंग्स ने अपनी टीम में शामिल कर लिया, बद्रीनाथ के खेल से हर कोई वाकिफ था| वह धीमी बल्लेबाजी के लिए जाने जाते थे, लेकिन चेन्नई की टीम जब भी मुश्किल में होती बद्री रौद्र रूप में आकर टीम को मुसीबत से निकाल ले जाते थे|
इसके बाद बद्रीनाथ ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट स्क्वाड का हिस्सा थे, लेकिन उन्हें एक भी मैच खेलने का मौका नहीं मिला, बद्रीनाथ के साथ कुछ ऐसा हो रहा था, जिससे पूर्व दिग्गज खिलाड़ी सिलेक्टरों के फैसले से नाराज रहते उस दौर में बद्री या तो टीम से बाहर होते या फिर बेंच पर बैठे होते|
ऐसा उनके साथ तकरीबन एक साल तक चलता रहा, इसके बाद इसी ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में आयोजित एक इमर्जिंग टूर्नामेंट में भारत का नेतृत्व किया इस टूर्नामेंट के एक मैच में उनके बल्ले से एक 81 रनों की शानदार पारी भी आई|
बद्रीनाथ को तभी मौका मिलता,जब कोई खिलाड़ी चोटिल होता

यह टूर्नामेंट भारत ने जीता था, बद्रीनाथ का दुर्भाग्य यह था कि जब वह अपने करियर के पीठ पर थे तो उस समय कई बड़े दिग्गज खिलाड़ी थे, जिसकी वजह से वह टीम में नहीं होते थे, बद्री को तभी मौका मिलता जब कोई खिलाड़ी चोटिल होता या फिर दो मैच बाद उन्हें निकाल दिया जाता था|
Subramaniam Badrinath वनडे में तो अपना डेब्यू कर चुके थे, लेकिन सफेद जर्सी अभी उन्हें मिलना बाकी था साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नागपुर टेस्ट में बद्रीनाथ ने टेस्ट डेब्यू किया, बद्री ने अपने पहले ही टेस्ट में डेल स्टेन, मोर ने मोर्कल और सोता सव जैसे महान गेंदबाजों के आगे घुटने टेकने की बजाय उनका डटकर सामना किया|
और 56 रनों की शानदार पारी खेली, इसी टेस्ट में हासीम आमला, जैकलिस ने भी शतकीय पारियां खेली थी लेकिन भारत यह टेस्ट हार गया था, इसके बाद बद्रीनाथ को एक और टेस्ट में खेलने का मौका मिला जहां उन्होंने सिर्फ एक रन बनाया, बाद में फिर बद्रीनाथ को टीम से बाहर कर दिया गया| इस तरह बद्रीनाथ का करियर हुआ समाप्त